जीवन मंत्र डेस्क. महाभारत में कौरव और पांडवों के युद्ध में श्रीकृष्ण की नीतियों के बल पांडवों में जीत हासिल की थी। कौरव सेना में बड़े-बड़े यौद्धा थे, लेकिन वे अधर्म के साथ थे, इस वजह से उनकी पराजय हुई। अंत में भीम ने दुर्योधन का वध कर दिया था। युद्ध समाप्ति के बाद सभी पांडव दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्र से मिलने पहुंचे थे, साथ में श्रीकृष्ण भी थे।
भीम ने धृतराष्ट्र के सबसे प्रिय पुत्र दुर्योधन और दु:शासन को बड़ी निर्दयता से मार डाला था, इस कारण धृतराष्ट्र बहुत गुस्से में थे। वे भीम को मार डालना चाहते थे। युद्ध के बाद श्रीकृष्ण के साथ युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव महाराज धृतराष्ट्र से मिलने पहुंचे।
युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र को प्रणाम किया और सभी पांडवों ने अपने-अपने नाम लिए, प्रणाम किया। श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र के मन की बात समझ गए थे कि वे गुस्से में हैं और भीम को मार डालना चाहते हैं।
धृतराष्ट्र ने भीम को गले लगाने की इच्छा जताई तो श्रीकृष्ण ने तुरंत ही भीम के स्थान पर भीम की लोहे की मूर्ति आगे बढ़ा दी। धृतराष्ट्र बहुत शक्तिशाली थे, उन्होंने क्रोध में आकर लोहे से बनी भीम की मूर्ति को दोनों हाथों से दबोच लिया और मूर्ति के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
मूर्ति तोड़ने की वजह से उनके मुंह से भी खून निकलने लगा और वे जमीन पर गिर गए। कुछ ही देर में उनका क्रोध शांत हुआ तो उन्हें लगा की भीम मर गया है तो वे रोने लगे। तब श्रीकृष्ण ने महाराज से कहा कि भीम जीवित है, आपने जिसे तोड़ा है, वह तो भीम के आकार की मूर्ति थी। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने भीम के प्राण बचा लिए।
इस प्रसंग की सीख यह है कि कभी भी कोई काम क्रोध में नहीं करना चाहिए, वरना बाद में पछताना पड़ता है। यहां धृतराष्ट्र ने क्रोध में भीम की मूर्ति तोड़ दी, लेकिन जब क्रोध शांत हुआ तो उन्हें अपने किए बहुत पछतावा हुआ था।
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