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हर दिन मरीजों को बचाने का हौंसला जुटाती हैं, लेकिन घर आकर अपनों का दर्द नहीं बांट पातीं

आज भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल के सीएम रहे भारत रत्न डॉ. बिधानचंद्र रॉय की याद में मनाया जाने वाला यह दिन इस बार विशेष भी है। आज का दिन दिन-रात जुटे उन डॉक्टर्स को सलाम करने का है जिनके लिए कोरोनावायरस को हराना ही एकमात्र लक्ष्य है।

दुनिया के हर देश में पहुंचे कोरोना से लड़ने के लिए इन फ्रंटलाइन डॉक्टर्स की हजारों कहानियां है। त्याग, समर्पण और संघर्ष की इन कहानियों में ही जिंदगी की उम्मीदे जगमगा रही हैं क्योंकि इस 2020 के डॉक्टर्स डे पर ऐसा लगता है कि हमारा हर दिन डॉक्टर्स की मेहरबानी पर है।

आज इस दिन के मौके परफोटो में देखते हैं फिलीपींस के दो डॉक्टर की कहानी जो बताती है कि हालात कितने मुश्किल हैं और डॉक्टर कितनी हिम्मत के साथ डटे हैं। (सभी फोटो रायटर्सएजेंसी के सौजन्य से)

सबसे पहले फिलीपींस के मनीला में काम कर रही डॉ जेन क्लेरी डोराडो की कहानी। यहां की राजधानी मनीला के ईस्ट एवेन्यू मेडिकल सेंटर हॉस्पिटल में कोविड-19 के इमरजेंसी रूम में काम की जिम्मेदारी लेने वाली इस डॉक्टर की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है। जब उन्होंने काम शुरू किया तो सबसे पहले मन में आया कि अब घर नहीं जाना है ताकि परिवारजनों को इंफेक्शन से बचा सकूं, लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाईं।

बीते दो महीने से डॉ. जेन हर रोज बड़े हौसले के साथ कोविड-19 इमरजेंसी रूम में अपनी सेवाएं दे रही हैं। हर रोज वे करीब 12 घंटे की शिफ्ट करने के बाद घर लौटती हैं तो उनके मन में हमेशा यही डर होता है कि मैं कहीं इंफेक्शन का कारण न बन जाऊं।
30 साल की डॉ. जेन के पैरेंट्स ने अपनी डॉक्टर बेटी पर बहुत दबाव बनाया कि वह उनके साथ घर में रहें, लेकिन बेटी उनसे दूर रहना चाहती थी। ऐसे में उनके पिता ने अपने स्टोरेज रूम में ही एक प्लास्टिक शीट और फॉइल लगाकर आइसोलेशन एरिया बना दिया। अब हर रोज डॉ. जेन हॉस्पिटल से घर पहुंचकर बाहर शूज उतारती हैं और उसी आइसोलेशन एरिया में रात बिताती हैं।
उनके पैंरेट्स की चिंता है कि वे बेटी के लिए कुछ कर सकें। इसीलिए वे उसके लिए खाना पहले ही एक स्टूल पर रख देते हैं और खुद प्लास्टिक शीट में बनी खिड़की से उसे देखते रहते हैं। डॉ. जेन भी उनका वहीं से हालचाल पूछती हैं। वे अपनी प्यारी बिल्ली को दुलार भी उसी खिड़की से कर लेती हैं।
डॉ. जेन डोराडो कहती हैं कि, ये सबसे मुश्किल घड़ी होती है क्योंकि मैं अपनों के पास होकर भी उनसे दूर हूं। लेकिन, ये करना ही पड़ेगा क्योंकि और कोई विकल्प भी नहीं है। मेरी मां की इच्छा मुझे को गले लगाने की होती है, लेकिन मैं उन्हें ऐसा न करने देने के लिए मजबूर हैं।
हॉस्पिटल में डॉ. जेन और उनके साथियों का अधिकतर समय आईसीयू में भर्ती गंभीर मरीजों की देखभाल में बीतता है। उनके देश में कोरोना के कारण सैकड़ों मेडिकल वर्कर्स संक्रमित हुए हैं और 30 से ज्यादा डॉक्टरों की भी मौत हो चुकी है। बावजूद इसके वे पूरे हौसले से जुटी हुई हैं।
यह दूसरी कहानी मनीला की ही एक अन्य डॉक्टर की है जो बच्चों को बचाने में जुटी हैं। 38 साल की पेडियाट्रिशियन डॉ. मीका बास्टिलो मनीला के एक दूसरे हिस्से में बच्चों के हॉस्पिटल में काम करती है जो कि अब एक कोविड रेफरल फेसिलिटी बना दिया गया है। डॉ. मीका कहती हैं कि, मेरी फैमिली चाहती हैं कि मैं अपना काम छोड़ दूं, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा करना सही नहीं, क्योंकि मैं जहां जाऊंगा कोरोना को तो फेस करना ही पड़ेगा।
डॉ. मीका के पिता और उनकी बहन भी काफी बीमार हैं और उन्हें भी मेडिकल सपोर्ट पर रखा गया है, बावजूद इसके उनके परिवार ने अपने घर के बाहर अस्थायी जगह बना दी है जिसमें जरूरत भर का सामान है। डॉ. मीका रोज यहीं रहती है और इसे अपना "क्वारैंटाइन होम" कहती हैं।बारिश से बचने के लिए इस तंबू नुमा जगह को प्लास्टिक शीट से ढंक दिया गया है और इसी के जरिये उनका परिवार आपस में सुरक्षित सोशल डिस्टेंसिंग रखता है।
डॉ. मीका कहती हैं, "मेरी मां ने इसमें परदे और टेबल क्लॉथ लगा दिए हैं जिससे कि ये घर जैसा नजर आए.... और मेरे भाई ने प्लास्टिक शीट से सेपरेशन बना दिया है।कोरोना के कारण बिगड़ते हालात के बीच डॉ. मीका हर रात N95 लगाकर परिवार के साथ प्रार्थना करती है कि ईश्वर हमें इस विपदा से उबार ले और इसी के साथ अगले दिन की तैयारियों में जुट जाती है क्योंकि उन्हें हॉस्पिटल में अपना कर्त्तव्य निभाना होता है।

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National Doctors Day 2020; How doctors shield families from COVID-19 with 'quarantent', safe spaces


from दैनिक भास्कर,,1733

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